हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एक बयान में भारत से आयात होने वाले सभी उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी गई है। इसका मुख्य कारण भारत द्वारा रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीदारी बताया गया है, जिसे अमेरिका ने "जियोपॉलिटिकल रिस्क" और "रूस की आर्थिक मदद" के रूप में देखा है।
अमेरिका चाहता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश रूस के खिलाफ सख्त कदम उठाएं, खासकर जब यूक्रेन युद्ध के चलते रूस पर पश्चिमी देशों ने पहले से ही कई प्रतिबंध लगाए हुए हैं।
🇮🇳 भारत की स्पष्ट नीति: तेल रहेगा तो सब रहेगा
भारतीय अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि:
“हम ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखेंगे, क्योंकि ये निर्णय भारत के आंतरिक हित, ऊर्जा सुरक्षा, और आर्थिक स्थायित्व से जुड़ा हुआ है।”
✅ मुख्य कारण:
वजह | विवरण |
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🛢️ ऊर्जा की आवश्यकता | भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है। घरेलू उत्पादन कम है और मांग लगातार बढ़ रही है। |
💸 रूसी तेल की सस्ती कीमत | रूस भारत को डिस्काउंटेड रेट पर कच्चा तेल दे रहा है, जिससे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की लागत और महंगाई पर नियंत्रण बना रहता है। |
🌐 दीर्घकालिक अनुबंध | भारत और रूस के बीच कई वर्षों के लिए तेल आपूर्ति के अनुबंध हैं, जिन्हें अचानक समाप्त करना संभव नहीं। |
⚖️ रणनीतिक स्वतंत्रता | भारत अपनी विदेश नीति को स्वायत्त रूप से चलाता है, और किसी भी दबाव में आने के बजाय “India First” नीति को प्राथमिकता देता है। |
🇺🇸 अमेरिका का दबाव: ट्रंप की चेतावनी
डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त 2025 से भारत से आने वाले वस्तुओं पर 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उनका कहना है कि भारत अगर रूस से तेल खरीदता है, तो यह "America First" नीति के खिलाफ है।
हालांकि, भारत का जवाब स्पष्ट रहा:
“हम किसी भी देश की रणनीतिक मजबूरियों के हिसाब से नहीं चल सकते। हमारी प्राथमिकता भारत की जनता है।”
📊 रूस से भारत का तेल आयात: आंकड़ों में
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वर्ष 2024-25 में भारत ने रूस से लगभग 38% तेल आयात किया था।
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भारत अब सऊदी अरब और इराक की तुलना में रूस से अधिक कच्चा तेल खरीद रहा है।
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डिस्काउंटेड रेट से भारत को $8-10 प्रति बैरल की बचत होती है।
🌐 रणनीतिक दृष्टिकोण: भारत का ऊर्जा कूटनीति संतुलन
भारत एक ओर अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ जैसे लोकतांत्रिक देशों का रणनीतिक सहयोगी है, वहीं दूसरी ओर वह रूस के साथ डिफेंस, स्पेस और एनर्जी सेक्टर में दशकों से जुड़ा रहा है।
भारत की नीति का सार:
"जहाँ आवश्यक हो, वहाँ सहयोग और जहाँ संभव हो, वहाँ स्वतंत्रता।"
📣 निष्कर्ष
रूस से तेल खरीद पर भारत का रुख पूरी तरह स्पष्ट है — यह एक अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय हितों से जुड़ा निर्णय है। अमेरिका या किसी अन्य देश के दबाव में आकर भारत अपने ऊर्जा-हित और आर्थिक संतुलन से समझौता नहीं करेगा।
यह मामला अब सिर्फ तेल तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की आत्मनिर्भर विदेश नीति और वैश्विक नेतृत्व क्षमता की परीक्षा बन चुका है।
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