भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो न सिर्फ अपने विचारों बल्कि अपने जीवन की साधारणता और संघर्षों के कारण भी लोगों के दिलों में एक खास स्थान रखते हैं। शिबू सोरेन ऐसा ही एक नाम हैं — जिन्होंने झारखंड के आदिवासी समाज की आवाज़ को राष्ट्रीय मंच पर बुलंद किया। उनके निधन की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, और उसी क्षण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस भावुकता और सम्मान के साथ उन्हें श्रद्धांजलि दी, वह एक पूरे राजनीतिक युग के अंत का प्रतीक बन गई।
शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं थे, बल्कि झारखंड आंदोलन के प्रतीक, गरीबों और आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा — खदानों में काम करने से लेकर संसद के गलियारों तक पहुँचना, उनके जीवन का हर पड़ाव प्रेरणादायक रहा। उन्होंने राजनीति को सत्ता का साधन नहीं, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का माध्यम माना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “एक जमीनी नेता” कहकर याद किया, जो दर्शाता है कि विरोध की राजनीति में भी सम्मान और संवेदना का स्थान होता है। गंगाराम अस्पताल में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा की गई मौन श्रद्धांजलि ने इस बात को सिद्ध कर दिया कि महानता किसी पद से नहीं, विचार और कर्म से आती है।
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