🕵️♂️ क्या है पूरा मामला?
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आज देशभर में एक बड़ा ऑपरेशन चलाया, जिसमें अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप से जुड़ी लगभग 50 कंपनियों और 35 से अधिक परिसरों पर छापेमारी की गई। यह कार्रवाई ₹3000 करोड़ के Yes Bank लोन घोटाले की जांच के तहत की गई, जिसमें फर्जी दस्तावेज, शेल कंपनियाँ, और पैसों की हेराफेरी की बात सामने आ रही है।
🔎 कब और कैसे हुआ यह घोटाला?
बताया जा रहा है कि 2017 से 2019 के बीच Yes Bank ने अनिल अंबानी ग्रुप की कई कंपनियों को भारी मात्रा में कर्ज दिए। इन लोन की प्रक्रिया में कई नियमों की अनदेखी की गई:
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लोन एप्लिकेशन के एक ही दिन मंजूरी मिल गई।
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कमज़ोर बैलेंस शीट वाली कंपनियों को भारी कर्ज दे दिया गया।
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कई कंपनियों का पता एक जैसा था, यानी वे शेल कंपनी होने की आशंका है।
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कुछ मामलों में लोन का पैसा सीधे समूह की अन्य इकाइयों में ट्रांसफर किया गया।
⚠️ मनी लॉन्ड्रिंग और ब्राइबरी के आरोप
ED को इस बात के भी सबूत मिले हैं कि कुछ बैंक अधिकारियों को रिश्वत दी गई ताकि लोन आसानी से पास हो जाए। साथ ही यह भी शक है कि पुराने लोन चुकाने के लिए नए लोन दिए गए यानी एवरग्रीनिंग की गई।
🏢 किन कंपनियों के नाम सामने आ रहे हैं?
जिन कंपनियों पर छापेमारी हुई है, उनमें अनिल अंबानी ग्रुप की फाइनेंशियल सर्विसेज, होम फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, और पावर कंपनियाँ शामिल हैं। ये कंपनियाँ पहले भी रेटिंग एजेंसियों की निगरानी में रह चुकी हैं।
📉 शेयर बाज़ार में हड़कंप
इस खबर के बाद रिलायंस ग्रुप की दो प्रमुख कंपनियों — Reliance Power और Reliance Infrastructure के शेयरों में तेज़ गिरावट आई। निवेशकों में चिंता है कि आगे और खुलासे होने पर ग्रुप की छवि और बिगड़ सकती है।
🗣️ ग्रुप की सफाई
अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि वे ED की जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं और सभी लेनदेन नियमानुसार किए गए हैं। उन्होंने किसी भी गलत काम से इनकार किया है।
📌 क्या हो सकते हैं आगे के कदम?
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ED इन कंपनियों के बैंक अकाउंट्स, टैक्स फाइलिंग, लोन दस्तावेज़ और इनवॉयस की गहन जांच कर रही है।
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यदि धोखाधड़ी साबित होती है, तो कई अधिकारियों की गिरफ्तारी, और संपत्तियों की जब्ती संभव है।
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इस घोटाले की जांच अब अन्य सरकारी एजेंसियाँ जैसे CBI और IT डिपार्टमेंट भी कर सकती हैं।
📊 निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक लोन घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की बैंकिंग प्रणाली की पारदर्शिता, कॉर्पोरेट जवाबदेही और वित्तीय नैतिकता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यदि यह साबित होता है कि फर्जी कंपनियों के ज़रिए हजारों करोड़ के लोन लिए गए और उन्हें निजी हितों में इस्तेमाल किया गया — तो यह भारत के कॉर्पोरेट इतिहास का एक बड़ा घोटाला बन सकता है।
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