2025 में बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमाई हुई है। राज्य में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले "SIR" यानी Special Summary Revision (विशेष पुनरीक्षण) को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कड़ा रुख अपनाया है और चुनाव बहिष्कार तक की चेतावनी दे दी है।
इस लेख में जानते हैं कि SIR विवाद क्या है, तेजस्वी यादव का ऐलान क्या है, और इसका बिहार की राजनीति पर क्या असर हो सकता है।
📌 क्या है SIR और क्यों है विवाद?
SIR (Special Summary Revision) एक चुनावी प्रक्रिया होती है जिसमें मतदाता सूची को अद्यतन (Update) किया जाता है। इसमें नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जाता है, मृतकों के नाम हटाए जाते हैं और स्थान बदले गए वोटर्स को अपडेट किया जाता है।
लेकिन बिहार में यह प्रक्रिया अब विवाद का कारण बन गई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि:
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नियमों का सही पालन नहीं हो रहा है
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कुछ इलाकों में जानबूझकर वोटर हटाए जा रहे हैं
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नए वोटरों का पंजीकरण धीमा किया जा रहा है
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ग्रामीण और अल्पसंख्यक क्षेत्रों में भेदभाव की शिकायतें सामने आ रही हैं
🔊 तेजस्वी यादव का कड़ा बयान
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने 22 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
"अगर SIR की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं होती, तो महागठबंधन चुनाव का बहिष्कार कर सकता है।"
उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार सरकार और चुनाव आयोग मिलकर लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश कर रहे हैं। तेजस्वी ने मांग की कि:
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हर विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची सार्वजनिक की जाए
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सभी राजनीतिक दलों को फील्ड वेरिफिकेशन प्रक्रिया में शामिल किया जाए
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संशयास्पद मामलों की न्यायिक जांच कराई जाए
⚖️ चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि:
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SIR प्रक्रिया केंद्र के निर्देशों और चुनाव आयोग की गाइडलाइन के तहत ही चल रही है
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सभी राजनीतिक दलों को समय रहते जानकारी दी गई
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तकनीकी कारणों से कुछ क्षेत्रों में देरी हुई है, लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी है
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि फाइनल वोटर लिस्ट सितंबर 2025 तक प्रकाशित की जाएगी।
🤔 विपक्ष की रणनीति क्या है?
महागठबंधन में शामिल RJD, कांग्रेस, CPI और अन्य दल अब एक संयुक्त मोर्चा बना रहे हैं। इनकी रणनीति है:
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SIR प्रक्रिया की निगरानी के लिए पार्टी स्तर पर वॉच कमिटी बनाना
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जिला स्तर पर चुनाव अधिकारियों से मिलकर मुद्दे उठाना
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चुनाव आयोग के समक्ष ज्ञापन प्रस्तुत करना
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और यदि मांगें नहीं मानी गईं, तो राज्यव्यापी विरोध आंदोलन शुरू करना
🧾 जनता की राय
बिहार की आम जनता इस विवाद को लेकर दो हिस्सों में बंटी दिख रही है:
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कुछ लोगों को लगता है कि ये सिर्फ राजनीतिक ड्रामा है
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वहीं कई मतदाता इस मुद्दे को गंभीर मान रहे हैं, खासकर वो युवा जिनका नाम अभी तक सूची में नहीं जोड़ा गया
📈 राजनीतिक प्रभाव
यह विवाद आने वाले चुनावों में बड़ा मोड़ ला सकता है:
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यदि विपक्ष चुनाव बहिष्कार करता है तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है
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सरकार पर मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है
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इससे विपक्ष को चुनाव में सहानुभूति मिल सकती है, और युवा वोटरों में नाराजगी भी बढ़ सकती है
🔚 निष्कर्ष
बिहार का SIR विवाद सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि राज्य के लोकतंत्र की बुनियाद पर उठ रहा एक गंभीर सवाल बन चुका है। तेजस्वी यादव का ऐलान विपक्ष की गंभीरता को दिखाता है, लेकिन अब यह देखना बाकी है कि क्या चुनाव आयोग इस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा पाएगा या राज्य एक और राजनीतिक संकट में फंस जाएगा।
आपका क्या मानना है? क्या विपक्ष का विरोध सही है? अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर दें। और राज्य की राजनीति से जुड़े ऐसे ही अपडेट्स के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें।
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