Sibu Soren (अक्सर Shibu Soren के नाम से लिखे जाते हैं) अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन 4 अगस्त 2025 की सुबह 8:56 बजे, नई दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ, यह जानकारी उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा दी गई थी
एक संघर्षशील जननेता की कहानी
भारत के राजनीतिक परिदृश्य में कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने न केवल नेतृत्व किया, बल्कि एक पूरे राज्य की पहचान और अस्तित्व को आकार देने में अहम भूमिका निभाई। शिबू सोरेन उन्हीं नेताओं में से एक हैं। उन्हें "गुरुजी" के नाम से भी जाना जाता है, और वे झारखंड की राजनीति के एक मजबूत स्तंभ माने जाते हैं।
आदिवासी अधिकारों की रक्षा, झारखंड राज्य की मांग, और समाज के सबसे वंचित तबके के लिए आवाज़ उठाने वाले शिबू सोरेन ने एक लंबा राजनीतिक सफर तय किया है, जिसमें संघर्ष भी है, सत्ता भी है और विवाद भी।
🔵 1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
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जन्म: 11 जनवरी 1944
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जन्म स्थान: नेमरा गांव, रामगढ़ ज़िला (अब हजारीबाग), झारखंड (तब बिहार का हिस्सा)
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पिता: सोबरन सोरेन
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जातीय पृष्ठभूमि: आदिवासी समुदाय (संथाल जनजाति)
बचपन से ही शिबू सोरेन ने अपने समुदाय की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को देखा और अनुभव किया। पिता की हत्या ज़मींदारों द्वारा की गई थी, जिसने उनके जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रेरित किया।
🔴 2. राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
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1970 के दशक में उन्होंने आदिवासियों की ज़मीन बचाने के लिए अभियान शुरू किया।
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1972 में "संज्ञा आंदोलन" की शुरुआत की — इसका उद्देश्य आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने वाले बाहरी लोगों के खिलाफ आवाज़ उठाना था।
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1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की।
उनकी राजनीति की जड़ें समाज और भूमि आंदोलन से जुड़ी रहीं। यही कारण था कि उन्होंने भूमि सुधार और स्थानीय अधिकारों को हमेशा प्राथमिकता दी।
🟢 3. झारखंड आंदोलन में भूमिका
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झारखंड को बिहार से अलग राज्य बनाने की मांग सबसे पहले 1950 के दशक में उठी थी, लेकिन इसे व्यापक जनसमर्थन और राजनीतिक ताकत शिबू सोरेन जैसे नेताओं ने ही दी।
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1980 और 1990 के दशक में JMM ने आंदोलन को उग्र रूप दिया और इसे जन-जन तक पहुंचाया।
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अंततः 15 नवंबर 2000 को झारखंड भारत का 28वां राज्य बना, जिसमें शिबू सोरेन की भूमिका केंद्रीय रही।
🟣 4. सांसद और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यकाल
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लोकसभा सदस्य: वे 8 बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं (दुमका से)।
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2004 में केंद्रीय कोयला मंत्री बने (मनमोहन सिंह सरकार)।
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2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने, लेकिन कार्यकाल छोटा रहा।
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इसके अलावा वे कई बार राज्य की राजनीति में 'किंगमेकर' भी रहे।
⚫ 5. विवाद और कानूनी मामले
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1994 में 'शशिभूषण प्रधान' अपहरण और हत्या मामले में नाम आया, जिसमें उन्हें 2006 में दोषी ठहराया गया लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया।
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कोयला घोटाले में भी नाम जुड़ा, लेकिन कानूनी रूप से साक्ष्य के अभाव में सजा नहीं हुई।
इन विवादों ने उनके राजनीतिक जीवन पर असर जरूर डाला, लेकिन उनके जनाधार में बड़ी गिरावट नहीं आई।
🟠 6. पारिवारिक और राजनीतिक विरासत
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उनके बेटे हेमंत सोरेन झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं और JMM के सक्रिय नेता हैं।
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शिबू सोरेन अभी भी पार्टी के संरक्षक के रूप में सक्रिय हैं और आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते रहते हैं।
🟤 7. विचार और कार्यशैली
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हमेशा "जल, जंगल, ज़मीन" को मूल मुद्दा मानते रहे हैं।
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राजनीतिक रुख स्पष्ट और स्थानीय हितों के पक्ष में रहा है।
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वे आम जनता के साथ जुड़ाव बनाए रखने वाले नेता रहे हैं, और इसी कारण उन्हें "गुरुजी" कहा जाता है।
🟣 8. समकालीन राजनीति में उनका स्थान
हालांकि अब सक्रिय राजनीति से वे धीरे-धीरे दूर हो रहे हैं, फिर भी झारखंड में शिबू सोरेन का नाम आज भी सम्मान और ताकत का प्रतीक है। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे एक आम आदिवासी युवक देश के सर्वोच्च सत्ता केंद्र तक पहुँच सकता है।
📌 निष्कर्ष: संघर्ष से सत्ता तक
शिबू सोरेन की कहानी सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा नहीं है, बल्कि वह आदिवासी संघर्ष, सामाजिक परिवर्तन और क्षेत्रीय पहचान की यात्रा है। आज जब झारखंड अपनी पहचान को मजबूत कर रहा है, तो गुरुजी का योगदान हर झारखंडवासी के दिल में है।